Friday, April 18, 2008

अंगूर का अनार

बात है यह बहुत पुरानी
खा रही थी अंगूर एक रानी
बीज उसके गले में फँसता
यह देख कर भाई उसका बहुत हँसता
जितने भी अंगूर वह पाती
बीज निकाल कर ही खाती
बीज वह बगीचे में बोती
अंगूर होंगे खूब वह सोचती
बीते कई महीने-साल
अंगूर ना उगा पर उगा अनार

jalpari 3

Monday, December 31, 2007

पेड़ों के कट जाने के बाद
बचेगी नहीं ये जिंदगी
पूछते हो क्यों
क्योंकि पेड़ है जीवन डोर

पद कट जाने के बाद
हो जाएंगे हम बर्बाद
पूछते हो क्यों
क्योंकि बचेगा ना कोई आहार

पेड़ कट जाने के बाद
जल जाएगी ये जमीन
पूछते हो क्यों
क्योंकि छाया न होगी फिर कभी

पेड़ कट जाने के बाद
सूखा पड़ जाएगा हर कहीं
पूछते हो क्यों
क्योंकि बारीश को
बुलाने वाला न होगा

Saturday, November 3, 2007

What have we come to?????

I wake up each day and wonder what to do,
Knowing I am here without you.
How we loved and cared for each other,
It doesn't seem right now that we just can't bear each other.
We were stuck like a glue,
And now we are through.
How can this possibily be true?
Why oh why did I ever love you?
Why did you wipe my tears,
And caress me and banish my fears?
Whenever I was depressed or sad,
Why oh why did you ever make me glad?
sometimes I loke back and think,
How could our love life stink?
But now I know that it was too good to be true,
I knew I could expect this from you.
You tore my heart and shattered my dreams,
When I think of what you have done ,
I go crazy and scream.
You think there is no thing I can do,
What da heck, to hell with you!!
You were garbage from the start,
I don't give a damn now thwt we've part.
Jalpari 1

Saturday, October 20, 2007

नानी की कहानी



मेरी प्यारी नानी


मुझे सुनाओ एक ऐसी कहानी


जिस में हो सेल फोन का पेड़


और हो आई पॉड का ढेर


मां पापा जब ऑफिस से आयें


अपने संग वे लैपटॉप लायें


मेरी प्यारी नानी


झट से सुनाओ एक ऐसी कहानी
जलपरी 3

Thursday, October 11, 2007

बरसात


रिम-झिम बरसा पानी

लो भर जाते हैं सागर नाली

नाचते है भालू मोर

बच्चे खूब मचते शोर

आते हैं जब बदल काले काले

होती है बरसात हौले हौले

कड़की बिजली

लो बारिश गिरी

आती है जब बरसात

लाती है हर्याली साथ

जब बारिश को ग़ुस्सा आये

घर पर्वत भी उड़ ले जाये

पर बारिश न होगी जब

जीवन भी न बचेगा तब

- जलपरी 3

तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं...


तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं

तुम क्या हो मेरे लिए

अगर तुम्हे दोस्त कि जरुरत है

हूँ मैं तुम्हारे लिए


तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं

तुम बहुत कुछ हो मेरे लिए

अगर तुम्हे मदत कि जरुरत है

करोगी कुछ भी तुम्हारे लिए


तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं

तुम्हे याद करती हूँ मैं

अगर तुम्हे मेरी जरुरत है

तुन्हारे लिए ही हूँ मैं

- जलपरी 3

Wednesday, October 10, 2007


कितनी मस्त होती यह दुनिया,
अगर जमीन पर उड़ती चिड़िया,
असमान में दौड़कर खेलते हम,
संसार में कभी ना होता गुम!

कितनी मस्त होती यह दुनिया,
अगर हर इन्सान को मिलता खाना ,
भूका कोई ना रहता!

कितनी मस्त होती यह दुनिया,
ना होता जो रुपिया पैसा,
वाह रे , कितनी मस्त होती दुनिये !
अगर कभी
ऐसा होता!!