खा रही थी अंगूर एक रानी
बीज उसके गले में फँसता
यह देख कर भाई उसका बहुत हँसता
जितने भी अंगूर वह पाती
बीज निकाल कर ही खाती
बीज वह बगीचे में बोती
अंगूर होंगे खूब वह सोचती
बीते कई महीने-साल
अंगूर ना उगा पर उगा अनार
jalpari 3
One day i had a free lecture in my school. We four jalparians were sitting and chit-chatting. One of the jalpari came out with an idea of writing poem, and so we wrote one and it turned out to be a good one. Since then we have been writing poems.